– कालेज के प्रबन्ध सचिव विनोद कुमार रुंगटा ने ग्रहण कराया कार्यभार
– प्राचार्य बनने के बाद डॉ धर्मदेव सिंह की शिक्षकों की बैठक
संतकबीरनगर। न्यूज केबीएन
एचआरपीजी कालेज में चल रहे प्राचार्य पद के विवाद का मंगलवार को पटाक्षेप हो गया। मंगलवार को एचआरपीजी कालेज के प्रबन्ध सचिव विनोद कुमार रुंगटा ने उन्हें कालेज के कार्यवाहक प्राचार्य का पदभार ग्रहण कराया। वहीं पूर्व कार्यवाहक प्राचार्य डॉ अजय कुमार पाण्डेय ने उन्हें पारम्परिक रीति रिवाज के साथ पदभार सौंपा। पदभार ग्रहण करने के बाद डॉ धर्मदेव सिंह ने शिक्षकों की बैठक करके उनसे सहयोग मांगा।
एचआरपीजी कालेज खलीलाबाद में महीनों से प्राचार्य पद को लेकर विवाद चल रहा था। कुलपति सिद्धार्थ विश्वविद्यालय प्रो. रजनीकान्त पाण्डेय ने इस मामले को लेकर यह आदेश दिया था कि प्राचार्य पद के लिए अर्ह डॉ धर्मदेव सिंह को पदभार ग्रहण कराया जाए। लेकिन इस आदेश का अनुपालन नहीं कराया जा रहा था। इसे लेकर डॉ धर्मदेव सिंह ने अपना प्रत्यावेदन कुलपति से लेकर विभिन्न अधिकारियों को दिया। इसके बाद हर जगह से यह आदेश आया कि कुलपति के आदेश का अनुपालन हर हाल में कराया जाय। कार्यवाहक प्राचार्य डॉ अजय कुमार पाण्डेय की जगह वाणिज्य विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ धर्मदेव सिंह को कार्यभार ग्रहण कराया जाए। इसके बाद कालेज के प्रबन्ध सचिव विनोद कुमार रुंगटा ने कालेज में जाकर पूर्व प्राचार्य डॉ अजय कुमार पाण्डेय से पदभार लेकर डॉ धर्मदेव सिंह को पदभार ग्रहण कराया। साथ ही साथ यह अपेक्षा की कि डॉ धर्मदेव सिंह कालेज को नई उचाइयां प्रदान करेंगे।
कालेज के प्राचार्य का पदभार ग्रहण करने के बाद डॉ धर्मदेव सिंह के शुभचिन्तकों, शिक्षको, छात्र छात्राओं ने पहुंचकर उन्हें बधाई दी। वहीं डॉ धर्मदेव सिंह ने कालेज के बेहतर संचालन में सभी लोगों का सहयोग मांगा।
कालेज को एनएसएस में दिलाया था राष्ट्रपति सम्मान
मूल रुप से कुशीनगर जनपद के निवासी डॉ धर्मदेव सिंह की शुरुआती शिक्षा दीक्षा उदित नारायण इण्टर कालेज पडरौना से हुई। उन्होने वर्ष 1973 में हाईस्कूल व वर्ष 1975 में इण्टरमिडिएट पास किया। उच्च शिक्षा के लिए वे गोरखपुर विश्वविद्यालय चले आए। वहां पर 1977 में उन्होने बीकाम, 1979 में एम काम किया और शोध में दाखिला लिया। शोध कार्य के दौरान ही उनका चयन एचआरपीजी कालेज में बतौर वाणिज्य शिक्षक हुआ। इसके बाद वे निरन्तर ही तन्मयता से अपने कार्य में लगे हुए थे। उन्होने कालेज में 1985 से लेकर 2000 तक कालेज के क्रीड़ाध्यक्ष पद के दायित्व का भी निर्वहन किया। इस दौरान उनकी टीम ने 5 बार अर्न्तमहाविद्यालयी बालीवाल प्रतियोगिता में प्रथम स्थान पाया। यही नहीं 3 बार दूसरा स्थान पाया। बाद में उन्हें एनएसएस का दायित्व भी दिया गया। एनएसएस में अपने दायित्व का निर्वहन करते हुए उन्होने 14 नवम्बर 2013 में कालेज को राष्ट्रपति पुरस्कार दिलाया। वहीं निर्वाचन आयोग के मतदाता अभियान में राज्य के मुख्य निर्वाचन आयुक्त ने भी उन्हें सम्मानित किया। 1 महीने तक वे दिल्ली में होने वाली गणतन्त्र दिवस परेड के कैम्प का भी नेतृत्व किया। यही नहीं उन्होने एनएसएस के 2 मेगा कैम्प भी किए। उनके द्वारा निर्देशित किए गए तमाम छात्र विभिन्न कम्पनियों, सरकारी संस्थानों व पुलिस विभाग में सेवाएं दे रहे हैं।
कालेज का सर्वागीण विकास ही हमारा उद्देश्य : डॉ धर्मदेव सिंह
एचआरपीजी के नए प्राचार्य के रुप में पदभार ग्रहण करने वाले डॉ धर्मदेव सिंह ने कहा कि कालेज ने शिक्षा के नित नए प्रतिमान स्थापित किए हैं। इसको बनाए रखने के साथ और बेहतर बनाना ही हमारा उद्देश्य है। पठन पाठन की बेहतर गरिमा बनी रहे। साथ ही शिक्षणेत्तर गतिविधियों में भी कालेज का प्रदर्शन अच्छा हो। इसके लिए मैं कृत संकल्पित हूं। कोई भी व्यक्ति अकेले कोई कार्य नहीं कर सकता। प्रबन्ध समिति, शिक्षकों, छात्र- छात्राओं और नगरजनों का सहयोग अपेक्षित है। इस कालेज की जो गरिमा रही है उसे बनाए रखने के लिए पूरी तरह से समर्पित रहेंगे। अगर किसी भी छात्र, शिक्षक या शिक्षणेत्तर कर्मचारी को कोई दिक्कत हो तो वे उनसे सीधे सम्पर्क कर सकते हैं। उनकी हर समस्या का यथा संभव निराकरण ही हमारा दायित्व है। प्रबन्ध समिति ने जिस आशा के साथ उनको यह पद दिया है, उस पद की गरिमा को बनाए रखते हुए निरन्तर बेहतर कार्य करना ही उनकी प्राथमिकता रहेगी।
डॉ रामाश्रय सिंह ने खुद को बताया प्राचार्य पद का हकदार
इस मामले में एक बड़ी बात यह है कि कालेज के ही भूगोल विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ रामाश्रय सिंह ने खुद को कार्यवाहक प्राचार्य पद का हकदार बताया है। इस मामले में उन्होने हाईकोर्ट में एक याचिका भी दायर की है। उनका दावा है कि वरिष्ठता क्रम में डॉ धर्मदेव सिंह से उपर हैं। उन्हें एपीआई के आधार पर अयोग्य करार दिया गया है जो बिल्कुल गलत है। उनका कहना है कि एपीआई की बाध्यता प्राचार्य पद के लिए होती है। कार्यवाहक प्राचार्य के लिए एपीआई की बाध्यता नहीं होती है। इसलिए उनको प्राचार्य बनाया जाना चाहिए। इस मामले में दायर याचिका की कई बार सुनवाई हो चुकी है। फिलहाल इस मामले में अगर फैसला डॉ रामाश्रय सिंह के पक्ष में आता है तो वे प्राचार्य बनाए जा सकते हैं।