अरुण सिंह ।
प्रदेश में चल रहे इस चुनाव में जहां केन्द्रीय नेतृत्व पार्टी को एक बार फिर सत्ता में लाने के लिए प्रयासरत है, वहीं दूसरी तरफ पार्टी के ही राजनैतिक शिखण्डी योगी को पटखनी देने के लिए आत्मघाती दाव लगाने में जुटे हुए हैं। पूर्वांचल की हर सीट पर कोई न कोई बवाल खड़ा कर रहे हैं, ताकि आने वाले लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में कुछ सीटों की हार का ठीकरा योगी के सिर पर फोड़ा जा सके।
केन्द्रीय नेतृत्व ने जबसे योगी आदित्यनाथ को प्रदेश का मुख्यमन्त्री बनाया है, तभी से भाजपाई शिखण्डियों का एक दल उनके पीछे पड़ा हुआ है। वे जगह जगह जाते हैं और यह कहते हैं कि योगी आदित्यनाथ तो कोई काम ठीक नहीं कर रहे हैं, योगी को कोई अनुभव ही नहीं है कि किस प्रकार काम करना चाहिए। उनको तो बिना वजह ही मुख्यमन्त्री बना दिया गया। वे इस पद के लायक नहीं थे। इनसे अच्छे लोग भी हैं पार्टी जो प्रदेश की बागडोर को संभाल सकते हैं। इस तरह की तमाम बातें होती हैं प्रदेश के मुख्यमन्त्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ।
ऐसी बातें करने वाले वे लोग हैं जो एक किलोमीटर पैदल चल दें तो जंघिया में मूत देंगे, 10 मिनट धूप में खड़े हो जाएं तो गश खाकर गिर जाएंगे, 10 घण्टा काम कर दें तो एक सप्ताह अस्पताल में रहेंगे, एसी न रहे तो पसीने से तर बतर हो जाएंगे, प्रदेश के किसी भी हिस्से में क्या अपने गृह जनपद की सभाओं में टिकट के इन दलालों को सुनने वाला कोई नहीं है । संघ के पसीने की बदौलत सत्ता सुख भोगने वाले इन बहुरुपियों को अमित शाह ने पहचाना और अन्तत: जमीन पर रहकर काम करने वाले योगी आदित्यनाथ को मुख्यमन्त्री बनाया। दो साल में ही इसके परिणाम भी जनता के सामने हैं। लेकिन मुख्यमन्त्री बनने के दिन से ही समाज का एक बड़ा वर्ग उनके विरोध में लगा हुआ है। एक समय था जब ये कहते थे कि योगी आदित्यनाथ को उपचुनाव के बाद हटा दिया जाएगा। अब इसके बाद कहता है कि लोकसभा चुनाव के बाद से हटा दिया जाएगा। वे काम नहीं करते हैं बल्कि योगी को हटाए जाने की प्रतीक्षा में लगे हुए हैं। निरन्तर इस तरह के कार्य कर रहे हैं कि योगी को मुख्यमन्त्री पद से हटा दिया जाए। उनकी यह कोशिश नहीं है कि योगी से बड़ी लकीर खींचकर आगे बढ़ें, बल्कि कोशिश यह है कि योगी की खींची गई लकीर को मिटा दें।
योगी को नीचा दिखाने की साजिश लोकसभा के उपचुनाव में ही हुई थी। गोरखपुर से एक ऐसे प्रत्याशी को उपचुनाव का टिकट दिया गया जो टिकट मिलते ही बीमार हो गया। यही नहीं बीमार होकर वापस आने के बाद वह मंचों पर वोट मांगने के लिए नहीं जाता था। कभी उसने गांवों में जाकर भ्रमण नहीं किया और योगी बिना प्रत्याशी के ही लोगों से उसके लिए वोट मांगते रहे। ऐसे प्रत्याशी को आगे करके उसे चुनाव लड़ाने वाले लोग भी पार्टी के खर्चे पर गोरखपुर के एसी होटलों तथा एसी गाडि़यों में बैठकर लोकसभा क्षेत्र में घूमते थे। उधर योगी आदित्यनाथ मुख्यमन्त्री रहते हुए गांव गांव में घूमकर रैलियां करते रहे और अपने निकम्मे प्रत्याशी के पक्ष में वोट मांगते रहे। आलम तो यह रहा कि जब चुनाव परिणाम आया और यह प्रत्याशी चुनाव हार गया तो सबसे पहले इन्हीं नेताओं ने अपने फेसबुकिया टीम से फेसबुक पर यह लिखवाया कि ‘गोरखनाथ मन्दिर के बूथ पर ही हार गया भाजपा प्रत्याशी’ । इसके बाद तमाम कमेण्ट आए और योगी को हटाने की बातें भी हुई। यह भी कहा गया कि योगी ने अपने लोगों से कह दिया था कि इस प्रत्याशी को वोट न दें। योगी की हिन्दू युवा वाहिनी प्रत्याशी का विरोध कर रही थी। ऐसी तमाम बातें – लेकिन दूसरे दिन जब अखबारों ने गोरखनाथ मन्दिर बूथ का आकड़ा ही उठाकर दे दिया, जिसमें अन्य प्रत्याशियों की जमानत तक नहीं बची थी, तब इनके पिछलग्गू शान्त हो गए।
वर्तमान समय में एक बार फिर शिखण्डियों का एक दल योगी के खेल को बिगाड़ने में जुटा हुआ है। वह पार्टी में टिकटों के साथ खेल रहा है। प्रत्याशियों को टिकट देने में देरी कर रहा है, टिकट को लेकर पार्टी में ही जातीय भेदभाव फैला रहा है, यह बताने का प्रयास कर रहा है कि यह योगी का कण्डीडेट है, यह पार्टी का कण्डीडेट है। कुल मिलाकर योगी और पार्टी के बीच खाई खोदने का प्रयास कर रहा है। वह जिताऊ कण्डीडेट के टिकट में अड़ंगा लगा रहा है, फलां जाति वाले नाराज हो जाएंगे, फलां जाति वाले कण्डीडेट का टिकट काटा जाए तो उसी जाति के आदमी को दिया जाए। ऐसे तमाम प्रोपोगण्डा चल रहे हैं। टिकट बेचने वाले अपनी दाल गलाने के साथ ही योगी को हटाने की मुहिम में लगे हुए हैं। लेकिन वे शायद यह नहीं जानते हैं कि पार्टी सत्ता में है तभी उनको यह मौका मिला हुआ है। पार्टी सत्ता में नहीं रहेगी तो सत्तू भी उनसे महंगा बिकेगा।
अब समय आ रहा है कि ऐसे लोगों को पहचाना जाए, उन्हें चेतावनी दी जाए, अगर इसके बाद भी नहीं मानते हैं तो उन्हें बाहर का रास्ता दिखाया जाए। क्योंकि अगर ऐसा नहीं होगा तो बहुत देर हो जाएगी, और तब पछताने से कुछ नहीं होगा।