- सब कुछ देख रही देश की जनता खुद तय करेगी अपना भविष्य
- वर्तमान परिप्रेक्ष्य में प्रासंगिक नहीं रह गए हैं जातीय गुणा गणित
अरुण सिंह।
अपनी बात को महाभारत के एक प्रसंग से शुरू करना चाहूंगा – बात उस समय की है जब पाण्डव इन्द्रप्रस्थ को जुए में हार गए थे। शान्तिदूत बनकर भगवान श्रीकृष्ण हस्तिनापुर के दरबार में गए थे। धोखे से जीते गए इन्द्रप्रस्थ को लौटाने की बात की। लेकिन दुर्योधन तो कुछ भी देने के लिए तैयार नहीं था। कुछ भी न देने का मतलब साफ था कि युद्ध होगा।
भगवान श्रीकृष्ण ने एक अन्तिम प्रयास किया और राज्यसभा के समक्ष यह बोले – भरत वंश के भविष्य को इस नासमझ योद्धा की महत्वाकांक्षा पर बलि नहीं चढ़ाया जा सकता है। कुछ ऐसी ही स्थितियों से गुजर रहा है भरत वंश के द्वारा निर्मित यह भारतवर्ष। रणभेरी बज चुकी है। सेनाएं आमने सामने आ चुकी हैं, युद्ध शुरू हो चुका है। हमारे महान देश भारत के भविष्य का फैसला होना है। जनता मूकदर्शक की भांति युद्ध के परिणाम की तरफ देख रही है।
लोकसभा चुनाव वर्ष 2019 की रणभूमि में अनेक महत्वाकांक्षी योद्धाओं का एक दल अपनी महत्वाकांक्षा को पूरा करने के लिए तरह तरह के प्रयासों में जुटा हुआ है। देश की जनता को धर्म से लेकर जाति, उपजाति, क्षेत्र और अन्य वर्गों में विभाजन की कई रेखाएं खींचने के अनुचित प्रयास चल रहे हैं। लेकिन क्या इस तरह के प्रयासों और प्रयोगों के बीच एक अखण्ड भारत का सपना पूरा होता दिख रहा है। कदापि नहीं, स्वार्थ की शिला पर एक मजबूत राष्ट्र का निर्माण नहीं हो सकता है। परिवारवादियों से लेकर सम्प्रदायवादियों, जातिवादियों और क्षेत्रवादियों ने अखण्ड भारत को खण्ड खण्ड में विभक्त करने का प्रयास किया है। जोड़ने का प्रयास किसी ने नहीं किया। अगर किसी ने किया है तो वह है रणक्षेत्र में दोनों सेनाओं के बीच कृष्ण की तरह से खड़ा है। देश की अस्मिता का मजाक बनाने वाले आज जनता के हितैषी बने दिखाई दे रहे हैं। जिनके पैरों के नीचे कोई जमीन नहीं है, उसे भी इस बात पर यकीन नहीं है। क्योंकि वह तो स्वार्थ में अन्धा हो चुका है। ऐसे में भारत वर्ष की जनता को अपने स्वाभिमान, सम्मान व देश के उत्थान के लिए क्या करना चाहिए वह खुद ही फैसला करे। अन्यथा बहुत देर हो जाएगी।
जय हिन्द ।
जहां धर्म हैं, वहीं कृष्ण हैं, जहां कृष्ण हैं, वहीं विजय है।