अरुण सिंह।
मशहूर शायर अकबर इलाहाबादी का एक संस्मरण याद आता है। उनका बेटा बिलायत में पढ़ता था।

अरुण सिंह
विलायत में ही उसने उन्हें बिना बताए एक बिलायती मेम से शादी कर ली थी। शादी के बाद अपनी यह बात अपने पिता को बताता कैसे। खुद बताने की हिम्मत नहीं थी। नतीजन उसे पत्र का सहारा लेना पड़ा। उसने अपने पिता को पत्र लिखा। सारी बातें लिख दीं और अन्त में एक शेर लिखा…
मिले न फूल तो कांटों से दोस्ती कर ली।
मुझे खुदा मिला, और मैने बन्दगी कर ली।।
पत्र अकबर इलाहाबादी को मिला। उन्होने पढ़ा और सारी बातें उन्हें पता चलीं। उन्होने अपने पुत्र को पत्र का जवाब लिखा। दीन दुनिया की बातों को लिखा। और अन्त में बेटे के शेर का जवाब लिखा…..
मिले न फूल तो कांटों से दोस्ती कर ली..?
नए जनम की तमन्ना में खुदकुशी कर ली।।
प्रदेश के कांग्रेस कार्यकर्ता और जिलों के पदाधिकारी भी ऐसी ही स्थितियों से गुजर रहे हैं। जिन स्थितियों में अकबर इलाहाबादी गुजर रहे थे। जिन कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने पिछले 5 सालों तक समाजवादी पार्टी के कुशासन के खिलाफ सदन से लेकर सड़क तक संघर्ष किया था।
उनके अन्दर इस बात को लेकर काफी आक्रोश था कि प्रदेश में व्याप्त इस गुण्डाराज और भय तथा भ्रष्टाचार से लड़ेंगे, आने वाले विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी को उसकी करनी का फल मिलेगा। उसके खिलाफ सदन में संघर्ष करने की एक नई जमीन मिलेगी। समाजवादी पार्टी को सत्ता में आने से रोकेंगे । यह सारे अरमान वास्तव में आंसुओ में बहते नजर आ रहे हैं।

समाजवादी झण्डों के बीच लहराता कांग्रेस का अकेला झण्डा
उपर ही उपर सेटिंग हो गई। निचले पायदान पर बैठा कार्यकर्ता खुद को ठगा महसूस कर रहा है। हर जगह लानत और मलानत झेलने वाले कार्यकर्ताओं को चुनाव में भी इन्हीं स्थितियों का सामना करना पड़ रहा है। आलम तो यह है कि वह कहीं वोट भी मांगने नहीं जा सकता है। किसके लिए वह वोट मांगे। साम्प्रदायिक शक्तियों को रोकने की बात कहे, परिवारवादी ताकतों से लड़ने की बात कहे या फिर पूंजीवादी ताकतों से दूर रहने की बात कहे। अजीब से तिराहे पर खड़ा कांग्रेस का कार्यकर्ता इस समय अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए संघर्ष कर रहा है। कहां जाए, किसके लिए प्रचार करे, और कैसे बचाए अपना अस्तित्व। नाम न छापने की शर्त पर एक कांग्रेस कार्यकर्ता कहते हैं कि ‘‘ पार्टी ने तो कार्यकर्ताओं को ही बेच दिया। इससे बड़ा दुर्भाग्य आखिर क्या होगा कि हम जिस पार्टी के खिलाफ संघर्ष करते थे। उसी पार्टी के पक्ष में जनमत संग्रह करें।’’
अजीब दुविधा की स्थिति में फंसे पार्टी के कार्यकर्ताओं के समक्ष जो संकट है, वही संकट पार्टी के परम्परागत मतदाताओं के समक्ष है। जब वे ऐसे मतदान केन्द्रों पर जाएंगे जहां कांग्रेस का प्रत्याशी मैदान में नहीं है। ईवीएम मशीन में हाथ का पंजा नहीं देखेंगे तो आखिर कौन सा बटन दबाएंगे… यह एक यक्ष प्रश्न है।