- सहजनवां के नगर पंचायत अध्यक्ष समेत कई लोगों पर है हत्या के आरोप
- पुलिस की शह पर खुलेआम घूम रहे हैं हत्यारे, सुलह का दे रहे हैं दबाव
गोरखपुर। निर्भय गुप्ता
जिले के सहजनवा थानाक्षेत्र के बोक्टा गांव के निवासी दुर्गेश यादव पुत्र लालजीत यादव ने आरोप लगाया कि जिले के सहजनवां थाने की पुलिस उनकी मां जियना देवी के हत्यारों को संरक्षण देने का काम कर रही है। कारण यह है कि हत्यारोपित प्रभावशाली हैं और सत्ता में उनकी पहुंच बहुत ही उंची है। सहजनवा पुलिस उन हत्यारों की दरबारी बनी हुई है और कोई भी कार्रवाई करने से कतराती है।
उक्त बातें उन्होने गोरखपुर जर्नलिस्ट प्रेस क्लब में पत्रकार वार्ता के दौरान कहीं। उन्होने बताया कि गत 28 अगस्त 2016 को सहजनवां के नगर पंचायत अध्यक्ष कमलेश फौजी के साथ राधेश्याम यादव, हनुमान, मनोज कुमार यादव, राहुल यादव, दयानन्द आदि ने उसे दरवाजे पर चढ़कर गोली मार दी। इस दौरान दिग्विजयनाथ को भी गोली लगी। सहजनवा थाने में इन सभी लोगों के खिलाफ धारा 388/ 16 – धारा 147, 148, 149, 302, 307, 452, 504, 506, 201, 120 बी भारतीय दण्ड विधन के तहत दर्ज किया गया गया था। विवेचना के दौरान राधेश्याम यादव की मौत हो गई। जबकि अभियुक्त मनोज कुमार यादव को उच्च न्यायालय से जमानत मिल गई। जबकि शेष अभियुक्त अभी तक फरार चल रहे हैं। इनकी फरारी की बात कह रही पुलिस यह बताए कि आखिर इनको किस तरह से तलाश रही है। जबकि ये सहजनवां की सड़कों पर घूमते हुए दिख जाएंगे। आलम तो यह भी है कि पुलिस इनके यहां दरबार करती है। साथ ही उन्हें फरार भी दिखाती है। विवेचना में इन आरोपितों के नाम निकालने के प्रयास भी चल रहे हैं। इसके लिए गत 3 मार्च को भी जिले के उच्चाधिकारियों को पत्र दिया गया था। लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गई।
15 मई से डीएम कार्यालय पर आमरण अनशन
पत्रकार वार्ता के दौरान दुर्गेश ने कहा कि अगर फरार चल रहे अभियुक्तों की गिरफ्तारी एक सप्ताह के अन्दर नहीं होती है तो वे पूरे परिवार के साथ जिलाधिकारी कार्यालय पर अनिश्चित कालीन आमरण अनशन करेंगे। इसकी जिम्मेदारी मुकामी पुलिस और प्रशासन की होगी।
पूर्व की समाजवादी सरकार की शह पर संरक्षित हुए हत्यारे
बताया जाता है कि जब यह हत्या हुई थी उस समय प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार थी। नतीजा यह हुआ कि समाजवादी पार्टी की शह पर हत्यारे पूरी तरह से संरक्षित किए गए। सब कुछ जानते हुए भी मुकामी पुलिस ने कभी कोई कार्रवाई नहीं की। यही नहीं उस समय पुलिस ने पीडि़त लोगों पर ही सुलह समझौते का दबाव डाला था। नतीजा यह हुआ कि उनके पकड़े न जाने से उनका मनोबल बहुत ही बढ़ गया।