– एक निर्बल महिला की हाय के बीच कईयों की बिखर गई राजनैतिक हैसियत
– राजनैतिक लाभ के लिए मर्यादाओं को ताक पर रखने वाले हुए धराशायी
अरुण सिंह, न्यूज केबीएन
‘‘जब जब कोई कर्ण बहाया जाएगा।
द्रौपदियों को नग्न कराया जाएगा।।
अन्धों के हाथों में जब भी सत्ता होगी।
यहां महाभारत दुहराया जाएगा।।’’

अरुण सिंह
ओज के कवि हरिनारायण सिंह ‘हरीश’ की कर्ण पर लिखी कविता की ये लाइनें जिला पंचायत संतकबीरनगर में चल रही वर्तमान स्थितियों को देखकर अनायास ही याद आ जाती हैं। सत्ता के बल पर किस तरह से एक द्रौपदी का सरेआम चीरहरण किया गया था। सत्ता हथियाने के लिए शिखण्डी के मानसपुत्रों ने सारी हदों को पार कर दिया था।
जिला पंचायत संतकबीरनगर के अध्यक्ष पद के चुनाव का समय और 4 जनवरी 2016 की वह रात संतकबीरनगर के लोगों को याद होगी। चुनाव प्रचार से लौट रही जिला पंचायत पद की प्रत्याशी श्रीमती नीना देवी का रात में जबरिया अपहरण कर लिया गया था। इसके बाद नीना को समर्थन देने वाले उनको खोजने में जुट गए। लेकिन नीना नहीं मिलीं। इससे पहले नीना को तमाम यातनाएं दी गई थीं कि वह अपना पर्चा वापस ले लें। उनकी देवरिया में स्थित गैस एजेन्सी सीज कर दी गई थी। उनके पुत्र के उपर फर्जी केस लगा दिए गए थे। यह सारा कुछ इसलिए किया गया कि जिला पंचायत की कुर्सी को हथियाया जा सके। कुर्सी हथियाने वाले अपने मंसूबों में सफल भी हुए। 5 जनवरी 2016 की शाम को सारी हदों को पार करते हुए नीना का पर्चा वापस करा दिया गया। संतोष यादव निर्विरोध जिला पंचायत संतकबीरनगर के अध्यक्ष भी बन गए। लेकिन इस अतिवादिता को देख रही जनता ने यह सब करने वाली पार्टी को ही विधानसभा चुनावों में उसकी जमीन दिखा दी। क्योंकि जनता सारा तमाशा देख रही थी।
जनता ने उस समय देखा था कि किस तरह से एक महिला के स्वाभिमान और सम्मान के साथ खिलवाड़ किया गया था। जनता ने यह भी देखा था कि जो महिला बिना साड़ी पहने कभी किसी सार्वजनिक स्थान पर नहीं गई उसे गाड़ी में भरकर कलेक्ट्रेट में पटक सा दिया गया था। यह एक विधिपूर्वक किया गया पाप था, जिसका दण्ड शायद ही किसी दण्ड संहिता में हो। इसका उत्तर तो जनता ही दे सकती थी। समय आने पर पर उस जनता ने जो उत्तर दिया उसे सभी लोग जानते हैं। जिले में ऐसे लोगों का सूपड़ा ही साफ हो गया। सारथी रहे जय को दिग्विजय मिली और एक बार फिर उन्होंने अपने अधिकारों के लिए लड़ रहे जिला पंचायत सदस्यों को सहेजा। सत्ता के बल पर महिला के सामने पौरुषवान बनने वाले आज कहीं नजर नहीं आए। जिला पंचायत अध्यक्ष के प्रति आने वाला अविश्वास प्रस्ताव पास हुआ। एक निर्बल महिला की आहों और कराहों की बुनियाद पर डगमगा रही, तथा षड़यन्त्रों के बल पर मिली कुर्सी 1 साल 5 महीना 19 दिन बाद छिन चुकी है। इस कुर्सी को अब नया सारथी मिलेगा। ……. जिला पंचायत में नया सबेरा आएगा। कारण कि न तो वहां पर षड़यन्त्र होगा, न सत्ता लोलुपता होगी, न बनावटी पौरुष होगा। होगा तो विकास का एक नया अध्याय होगा जिसकी बुनियाद इतनी कमजोर नहीं होगी जितनी पहले थी।
सवाल जो आज भी अनुत्तरित हैं…
क्या धर्मयुद्ध के जरिए तत्कालीन लोग इस लड़ाई को नहीं लड़ सकते थे।
एक स्त्री को हराने के लिए एक साथ इतने सारे पुरुषों का पौरुष जवाब दे चुका था।
बिना किसी छल के ही यह युद्ध लड़ा नहीं जा सकता था।
यह लड़ाई जीतने के लिए इस स्तर तक नीचे गिर जाना जरुरी था ।
यह लड़ाई जीतने के बाद भी विजेता किसी से आंख मिलाने के काबिल रहे।
क्या पतन इस स्तर पर जरुरी था कि उसका प्रायश्चित भी न करने योग्य हो।
… और दिग्विजय ही बने भावी पार्थ के सारथी
जनवरी 2016 में शुरु हुई इस जंग को विधर्म के जरिए जीता गया था। विधर्म के सहारे लाक्षागृह, चीरहरण, द्यूत क्रीड़ा जैसे तमाम षड़यन्त्र रचे गए। इस दिग्विजय के दौरान पाण्डव पक्ष को जय दिलाने के लिए दिग्विजय सारथी बने थे। लेकिन असहाय होकर सब कुछ देखने वाले पितामहों के बीच वे खुद को असहाय महसूस कर रहे थे। लेकिन हमेशा सत्य का साथ देने वाले दिग्विजय को रण में जय मिली। जय मिलने के बाद से ही अधर्म युद्ध के जरिए जीती गई जिला पंचायत कुर्सी पर बैठने वालों को पदच्युत करने में लगे थे। अपने मंसूबों में वे सफल भी हुए और कौरवदल के षड़यन्त्रों के बीच असहाय पाण्डवों के पार्थसारथी बने।